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रामचरित मानस

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एहि महँ रुचिर सप्त सोपाना। रघुपति भगति केर पंथाना॥

अति हरि कृपा जाहि पर होई। पाउँ देइ एहिं मारग सोई॥2॥


भावार्थ:-इसमें सात सुंदर सीढ़ियाँ हैं, जो श्री रघुनाथजी की भक्ति को प्राप्त करने के मार्ग हैं। जिस पर श्री हरि की अत्यंत कृपा होती है, वही इस मार्ग पर पैर रखता है॥2॥


* मन कामना सिद्धि नर पावा। जे यह कथा कपट तजि गावा॥

कहहिं सुनहिं अनुमोदन करहीं। ते गोपद इव भवनिधि तरहीं॥3॥


भावार्थ:-जो कपट छोड़कर यह कथा गाते हैं, वे मनुष्य अपनी मनःकामना की सिद्धि पा लेते हैं, जो इसे कहते-सुनते और अनुमोदन (प्रशंसा) करते हैं, वे संसार रूपी समुद्र को गो के खुर से बने हुए गड्ढे की भाँति पार कर जाते हैं॥3॥


* सुनि सब कथा हृदय अति भाई। गिरिजा बोली गिरा सुहाई॥

नाथ कृपाँ मम गत संदेहा। राम चरन उपजेउ नव नेहा॥4॥


भावार्थ:-(याज्ञवल्क्यजी कहते हैं-) सब कथा सुनकर श्री पार्वतीजी के हृदय को बहुत ही प्रिय लगी और वे सुंदर वाणी बोलीं- स्वामी की कृपा से मेरा संदेह जाता रहा और श्री रामजी के चरणों में नवीन प्रेम उत्पन्न हो गया॥4॥


दोहा :

* मैं कृतकृत्य भइउँ अब तव प्रसाद बिस्वेस।

उपजी राम भगति दृढ़ बीते सकल कलेस॥129॥


भावार्थ:-हे विश्वनाथ! आपकी कृपा से अब मैं कृतार्थ हो गई। मुझमें दृढ़ राम भक्ति उत्पन्न हो गई और मेरे संपूर्ण क्लेश बीत गए (नष्ट हो गए)॥129॥


चौपाई :

* यह सुभ संभु उमा संबादा। सुख संपादन समन बिषादा॥

भव भंजन गंजन संदेहा। जन रंजन सज्जन प्रिय एहा॥1॥


भावार्थ:-शम्भु-उमा का यह कल्याणकारी संवाद सुख उत्पन्न करने वाला और शोक का नाश करने वाला है। जन्म-मरण का अंत करने वाला, संदेहों का नाश करने वाला, भक्तों को आनंद देने वाला और संत पुरुषों को प्रिय है॥1॥
राम उपासक जे जग माहीं। एहि सम प्रिय तिन्ह कें कछु नाहीं॥

रघुपति कृपाँ जथामति गावा। मैं यह पावन चरित सुहावा॥2॥


भावार्थ:-जगत्‌ में जो (जितने भी) रामोपासक हैं, उनको तो इस रामकथा के समान कुछ भी प्रिय नहीं है। श्री रघुनाथजी की कृपा से मैंने यह सुंदर और पवित्र करने वाला चरित्र अपनी बुद्धि के अनुसार गाया है॥2॥


* एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा॥

रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि। संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि॥3॥


भावार्थ:-(तुलसीदासजी कहते हैं-) इस कलिकाल में योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत और पूजन आदि कोई दूसरा साधन नहीं है। बस, श्री रामजी का ही स्मरण करना, श्री रामजी का ही गुण गाना और निरंतर श्री रामजी के ही गुणसमूहों को सुनना चाहिए॥3॥

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1 Comments

shweta soni

21-Jul-2022 02:00 PM

Nice 👍

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